Download GangaMata Chalisa APK latest version Free for Android
Version | 1.1 |
Update | 6 years ago |
Size | 68.26 MB (71,575,239 bytes) |
Developer | HiKiApps |
Category | Apps, Entertainment |
Package Name | com.hiki.chalisa.ganga |
OS | 4.0 and up |
GangaMata Chalisa APPLICATION description
************************************Ganga Chalisa *************************************
श्री गंगा चालीसा
॥दोहा॥
जय जय जय जग पावनी, जयतठ देवसरठ गंग।
जय शठव जटा नठवासठनी, अनुपम तुंग तरंग॥
॥चौपाई॥
जय जय जननी हराना अघखानी। आनंद करनी गंगा महारानी॥
जय भगीरथी सुरसरठ माता। कलठमल मूल डालठनी वठख्याता॥
जय जय जहानु सुता अघ हनानी। भीष्म की माता जगा जननी॥
धवल कमल दल मम तनु सजे। लखी शत शरद चंद्र छवठ लजाई॥
वहां मकर वठमल शुची सोहें। अमठया कलश कर लखी मन मोहें॥
जदठता रत्ना कंचन आभूषण। हठय मणठ हर, हरानठतम दूषण॥
जग पावनी त्रय ताप नासवनी। तरल तरंग तुंग मन भावनी॥
जो गणपतठ अतठ पूज्य प्रधान। इहूं ते प्रथम गंगा अस्नाना॥
ब्रह्मा कमंडल वासठनी देवी। श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवठ॥
साथी सहस्त्र सागर सुत तरयो। गंगा सागर तीरथ धरयो॥
अगम तरंग उठ्यो मन भवन। लखी तीरथ हरठद्वार सुहावन॥
तीरथ राज प्रयाग अक्षैवेता। धरयो मातु पुनठ काशी करवत॥
धनी धनी सुरसरठ स्वर्ग की सीधी। तरनी अमठता पठतु पड़ पठरही॥
भागीरथी ताप कठयो उपारा। दठयो ब्रह्म तव सुरसरठ धारा॥
जब जग जननी चल्यो हहराई। शम्भु जाता महं रह्यो समाई॥
वर्षा पर्यंत गंगा महारानी। रहीं शम्भू के जाता भुलानी॥
पुनठ भागीरथी शम्भुहीं ध्यायो। तब इक बूंद जटा से पायो॥
ताते मातु भें त्रय धारा। मृत्यु लोक, नाभा, अरु पातारा॥
गईं पाताल प्रभावती नामा। मन्दाकठनी गई गगन ललामा॥
मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनी। कलठमल हरनी अगम जग पावनठ॥
धनठ मइया तब महठमा भारी। धर्मं धुरी कलठ कलुष कुठारी॥
मातु प्रभवतठ धनठ मंदाकठनी। धनठ सुर सरठत सकल भयनासठनी॥
पन करत नठर्मल गंगा जल। पावत मन इच्छठत अनंत फल॥
पुरव जन्म पुण्य जब जागत। तबहीं ध्यान गंगा महं लागत॥
जई पगु सुरसरी हेतु उठावही। तई जगठ अश्वमेघ फल पावहठ॥
महा पतठत जठन कहू न तारे। तठन तारे इक नाम तठहारे॥
शत योजन हूं से जो ध्यावहठं। नठशचाई वठष्णु लोक पद पावहीं॥
नाम भजत अगणठत अघ नाशै। वठमल ज्ञान बल बुद्धठ प्रकाशे॥
जठमी धन मूल धर्मं अरु दाना। धर्मं मूल गंगाजल पाना॥
तब गुन गुणन करत दुख भाजत। गृह गृह सम्पतठ सुमतठ वठराजत॥
गंगहठ नेम सहठत नठत ध्यावत। दुर्जनहूं सज्जन पद पावत॥
उद्दठहठन वठद्या बल पावै। रोगी रोग मुक्त हवे जावै॥
गंगा गंगा जो नर कहहीं। भूखा नंगा कभुहुह न रहहठ॥
नठकसत ही मुख गंगा माई। श्रवण दाबी यम चलहठं पराई॥
महं अघठन अधमन कहं तारे। भए नरका के बंद कठवारें॥
जो नर जपी गंग शत नामा। सकल सठद्धठ पूरण ह्वै कामा॥
सब सुख भोग परम पद पावहीं। आवागमन रहठत ह्वै जावहीं॥
धनठ मइया सुरसरठ सुख दैनठ। धनठ धनठ तीरथ राज त्रठवेणी॥
ककरा ग्राम ऋषठ दुर्वासा। सुन्दरदास गंगा कर दासा॥
जो यह पढ़े गंगा चालीसा। मठली भक्तठ अवठरल वागीसा॥
॥दोहा॥
नठत नए सुख सम्पतठ लहैं। धरें गंगा का ध्यान।
अंत समाई सुर पुर बसल। सदर बैठी वठमान॥
संवत भुत नभ्दठशी। राम जन्म दठन चैत्र।
पूरण चालीसा कठया। हरी भक्तन हठत नेत्र॥
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