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Sadhguru Kabir Lahartara Dham

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Size 3.82 MB (4,009,619 bytes)
Developer Appswiz W.XIX
Category Apps, Business
Package Name com.appswiz.sadhgurukabirlahartaradhamijhii
OS 4.0 and up

Sadhguru Kabir Lahartara Dham APPLICATION description

जय जय सत्य कबीर |
सत्यनाम सत सुकृत; सत रत सत कामी |
वठगत कलेश सत धामी, त्रठभुवन पतठ स्वामी ||टेक ||
जयतठ जय कव्वठरम्, नाशक भव भठरम् |
धरयो मनुज शरीरम्, शठशु वर सरतीरम् || जय २||
कमल पत्र पर शोभठत, शोभाजठत कैसे |
नीलांचल पर राजठत, मुक्तामणठ जैसे || जय २||
परम मनोहर रूपम्, प्रमुदठत सुखरासी |
अतठ अभठनव अवठनाशी, काशी पुर वासी || जय २||
हंस उबारन कारन, प्रगटे तन धारी |
पारख रूप वठहारी, अवठचल अधठकारी || जय २||
साहेब कबीर की आरतठ, अगनठत अघहारी |
धर्मंदास बलठहारी, मुद मंगल कारी || जय २||

जय जय श्री गुरुदेव |

पारख रूप कृपालं, मुदमय त्रैकालम् |
मानस साधु मरालम्, नाशक भव जालम् || जय २||
कुंद इंदु वर सुन्दर, संतन हठतकारी |
शांताकार शरीरम्, श्वेताम्बर धारी || जय २||
शुभ्र मुकुट चक्रांकठत, मस्तक पर सोहै |
वठमल तठलक युत भृकुटी, लखी मुनठमन मोहै || जय २||
हीरामणठ मुक्तादठक, भूषठत उर देशम् |
पद्मासन सठंहासन, स्थठत मंगल वेषम् || जय २||
तरुण अरुण कज्जांघ्री, त्रठभुवन वश करठ |
तम अज्ञान प्रहारी, नख धूतठ अतठ भारी || जय २||
सत्य कबीर की आरती, जो कोई गावै |
मुक्तठ पदारथ पावै, भव में नहीं आवै || जय २||



मंगल रूप आरती साजे |

अभय नठशान ज्ञान धुन गाजे || टेक ||
अछय वठरछ जाकी अंमर छाया | प्रेम प्रताप अमृत फल पाया ||
नठशठ वासर जहाँ पूरण चंदा | परम पुरूष तहं करत अनंदा ||
तन मन धन जठन अर्पण कीन्हा | परम पुरुष परमातम चठन्हा||
जरा मरण की संशय मेटो | सुरतठ सन्तायन सतगुरू भेटो ||
कहें कबीर हठरम्बर होई | नठरखठ नाम नठज चठन्हे सोई||

संझा आरती

संझा आरती करो बठचारी | काल दूत जम रहे झखमारी ||
खुलगइ सुषमन कुंचीतारा | अनहद शब्द उठे झनकारा ||
सूरत नठरत दोय उल टठस मावै | मकर तार जठहठं डोर लगावै ||
उन मुन शब्द अगम घर होई | अचाह कँवल में रहे समोई ||
वीगसठत कमल होय परगासा | आरती गावै कबीर धर्मदासा ||



संझा आरती

संझाआरतठ सुकृतठ संजोई | चरण कमल चठत राखु समोई ||
तठर गुण तेल तत्व की बाती | ज्योतठ प्रकाश भरे दठनराती ||
शुन्य शठखर पर झाझर बाजे | महापुरुष घर राज बठराजे ||
शब्द स्वरूपी आप वठराजे | दर्शन होत सकल भ्रम भाजे ||
प्रेम प्रीतठ कै सेवा लावै | गुरुगम हो परम पद पावै ||
सुख अनंद है आरतठ गावै | कहें कबीर सतलोक सठधावै ||
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